अर्थालंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण- Arthalankar Kise Kahte Hai
Arthalankar In Hindi: अलंकार के इस भाग मे आप अर्थालंकार की परिभाषा, अर्थालंकार के भेद और उदाहरण के बारे मे सबकुछ जानेंगे। इसी के साथ आपको यह सब याद भी हो जाएगा कि, Arthalankar Kise Kahate Hain? क्योंकि आपको मलूम है कि हमारी परिक्षाओं मे कितना ज्यादा इसको पूछा जाता है, तो उस कारण से मैने यह पोस्ट बनाई है। तो चलिए जानते है Arthalankar hindi me.

Arthalankar In Hindi – अर्थालंकार
अर्थालंकार की परिभाषा – साहित्य मे जो अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहते है अर्थात् जहाँ पर अर्थ के कारण किसी काव्य के सौन्दर्य में वृद्धि होती है, वहाँ अर्थालंकार होता है। यहाँ ध्यान रहे अर्थालंकार काव्य के अर्थ पर आश्रित होते है।
अर्थालंकार के भेद – Artha alankar ke bhed
उपमा | रूपक | उत्प्रेक्षा |
भ्रान्तिमान | सन्देह | दृष्टान्त |
अतिश्योक्ति | विभावना | अन्योक्ति |
विरोधाभास | विशेषोक्ति | प्रतीप |
अर्थान्तरन्यास |
Arthalankar Ke Bhed
हस सभी को Arthalankar ke bhed class 9, 10, 11, class 12 सबसे कई बार पूछा जाता है, तो आपको मै यहाँ बता दूँ कि अर्थालंकार के भेद इस प्रकार है –
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- विरोधाभास अलंकार
- मानवीयकरण अलंकार
- अतिशयोक्ति अलंकार
उपमा अलंकार – Upma Alankar In Hindi
समान धर्म के आधार पर जिस एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार ( Upma Alankar) माना जाता है। हिंदी व्याकरण मे उपमा के चार अंग होते है-
- उपमेय – वर्णनीय वस्तु जिसकी उपमा या फिर समानता दी जाती है, उस वस्तु को उपमेय कहते है। जैसे-
- सरीता का मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। (इस वाक्य मे मुख की चन्द्रमा से समानता बताई गई है, अतः मुख उपमेय है।)
- उपमान – जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है, उसे उपमान कहते है।
- मुख की समानता चन्द्रमा से की गी है, अतः उपमान चन्द्रमा है।
- साधारण धर्म – जिस गुण के लिए उपमा दी जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं।
- तो उदाहरण से ज्ञात होता है कि सुन्दरता के लिए उपमा दी गई है, अतः सुन्दरता साधारण धर्म है।
- वाचक शब्द – जिस शब्द के द्वारा या फिर सहायता से उपमा दी जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं।
- उदाहरण से ज्ञात है कि, समान शब्द वाचक है। इसी तरह जैसा, सा, ऐसा, सदृश आदि भी वाचक होते है।
उपमा अलंकार के भेद – Upma Alankar Ke Bhed
1) पूर्णोपमा – जहाँ उपमा के चार अंग विद्यामान रहते है, वहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार होता है। जैसे –
प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे।
इस काव्य पंक्ति में, प्रातः कालीन नभ उपमेय है, शंख उपमान है, नीला साधारण धर्ण है और जैसे वाचक शब्द है। तो यहाँ चारो अंग है, इसलिए यहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार है।
2) लुप्तोपमा – जहाँ उपमा के एक या अनेक अंगों का अभाव होता है, वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है। जैसे –
मखमल के झूले पड़े, हाथी सा टीला।
3) मालोपमा – जिस किसी कथन में एक ही उपमेय की अनेक अपमान होते है, वहाँ मलोपमा अलंकार होता है। जैसे-
काम-सा रूप, प्रताप दिनेश-सा
सोम सा सील है राम महीप का।
इसमे राम उपमेय है, किन्तु उपमान, साधारण धर्म और वाचक शब्द तीन हैं- काम सा रूप, दिनेश सा प्रताप और सोम सा शील। अतः यहाँ पर मालोपमा माना जाएगा।
Upma Alankar Ke Udaharan
उपमा अलंकार के उदाहरण मैने पूरे दिये है। इनको आप याद कर ले जिससे की आपको अलंकार के बारे मे सबकुछ जानकारी हो जाए।
पंक्ति | पहचान |
चाँद की सी उजली जाली | चांद के समान उजला बताया गया है। |
लघु तरनि हंसिनी सी सुन्दर | नदी के तट को हंस के समान बताया गया है। |
मखमल के झूले पड़े हाथी सा टीला | टीले की तुलना हाथी जानवर से की गई है। |
हाय फूल सी कोमल बच्ची , हुई राख की ढेरी थी। | बच्ची की कोमलता फूल के समान की गई है। |
सिंधु सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह | निर्वाचित होने के उत्साह को सिंधु नदी के समान बताया गया है। |
उतर रही है संध्या सुंदरी परी सी | संध्या को परी के रूप में चित्रित किया गया है। |
वह दीपशिखा सी शांत भाव में लीन | दीप से उठने वाली ज्वाला के समान शांत बताया गया है। |
रूपक अलंकार – Rupak Alankar In Hindi
जहाँ उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप हो अर्थात् उपमेय और उपमान को एक रूप कह दिया जाए, वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। जैसे –
पायो जी मैने राम रतन धन पायो।
उपर्युक्त पंक्ति में राम रतन को ही धन कहा गया है। राम रतन उपमेय पर धन के उपमान का आरोप है तथा दोनों मं भिन्नता है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
रूपक अलंकार के उदाहरण
पंक्ति | पहचान |
वन शारदी चंद्रिका-चादर ओढ़े। | यहाँ चंद्रिका उपमेय में चादर उपमान का आरोप हुआ है, के कारण रूपक अलंकार माना गया है। |
हमारे हरि-हारिल की लकरी। | ईश्वर को लकड़ी के रूप में बताया है, जिस पर प्रेम का कोई असर नहीं है। |
उदित उदय गिरि-मंच पर रघुबर-बाल पतंग बिकसे संत-सरोज सब हरषे लोचन-भृंग। । | पहाड़ रूपी मंच ,बाल पतंग रूपी रघुवर ,कमल रूपी संत ,लोचन रूपी भंवरे बताया गया है। |
मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों। | यहां चंद्रमा उपमेय में खिलौना उपमान का आरोप है, जिसके कारण रूपक अलंकार माना गया है। |
मंद हंसी मुखचंद जुन्हाई। | मुख को चांद रूपी माना गया है। |
पायो जी मैंने राम-रत्न धन पायो | |
ईस भजनु सारथी-सुजाना , बिरति-वर्म संतोष कृपाना। | |
प्रश्न चिन्हों में उठी हैं भाग्य-सागर की हिलोंरे। | |
राम नाम मनि-दीप धरु , जीह देहरी दवार एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास। । | |
चरण-कमल बन्दों हरि राई। | यहाँ चरण उपमेय तथा कमल उपमान में अभेद समानता बताई गई है, जिसके कारण रूपक अलंकार होगा। |
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते ? |
उत्प्रेक्षा अलंकार – Utpreksha Alankar In Hindi
जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें मानो, जानो, मनु, जनु, इव जसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। उत्प्रेक्षा के तीन भेद होते है- वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा। जैसे –
सिर फट गया उसका वहीं।
मानो अरुण रंग का घड़ा हो।।
इस पंक्ति से सिर के लाल रंग का घड़ा होने की कल्पना की जा रही है। उपमेय में उपान के होने की कल्पना की जा रही है। अतः यहाँ पर उत्प्रेक्ष अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से।
मानो झूम रहे हों तरु भी, मंद पवन के झौंकों से।।
मानहु बिधि तन-अच्छ-छबि, स्वच्छ राखिबैं काज।
बहुत काली सिल जरा-से,
लाल केसर-से कि जैसे धुल गई हो।
भई मुदित सब ग्राम वधूटीं_रंकन्ह राय रासि जनु लूटी।
चमचमात चंचल नयन_बिच घूँघट पट झीन।
मानहु सुरसरिता विमल_जल बिछुरत जुग मीन ।।
झुक कर मैंने पूछ लिया ,खा गया मानो झटका।
मानौ भीत जानि महासीत, तें पसारि पानि मानो
छतियाँ की छाँह राख्यों, पावक छिपाय के।
फुले हैं कुमुद फूली, मालती सघन बन
फूलि रहे तारे मनो-मोती अनगिन हैं।
सोहत ओढ़े पीत पट , स्याम सलोने गात।
मनो नीलमणि सैल पर , आतप पर्यौ प्रभात ।।
उस काल मारे क्रोध के_तनु कॉपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से_सोता हुआ सागर जगा।।
पंक्ति | पहचान |
सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात मनहूँ नीलमणि सैल पर आपत परयो प्रभात। । | कृष्ण की सुंदरताम श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की औक पितांबर में सुबह की धूप जैसा प्रतीत होना माना गया है। |
कहती हुई यों उतरा के नेत्र जल से भर गए हिम के कणों से पूर्ण मानों हो गए पंकज नए। | कहते हुए उतरा की आंखों से अश्रु की धारा इस प्रकार बहने लगी मानो जैसे हिम के कर्ण हो जिससे कमल धूल कर नए से प्रतीत हो रहे हों । |
उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने लगा , मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा । | क्रोध के मारे इस प्रकार शरीर कांपने लगा मानो जैसे, सोता हुआ सागर प्रलय बचाने के लिए जागा हो। |
सिर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घड़ा हो।। | |
पाहुन ज्यों आए हो गांव में शहर के मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के। । | जिस प्रकार मेहमान शहर का गांव में सज संवर कर आता है उसी प्रकार बादल संवर कर आने का बोध हो रहा है। |
भ्रान्तिमान अलंकार – Bhrantiman Alankar In Hindi
जिस वाक्य में समानता के कारण एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो, वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है। जैसे-
जान स्याम घन स्याम को, नाच उठे वन-मोर।
इस पंक्ति में श्री कृष्ण को देखकर, साँवलेपन के कारण वन के मोर को काले बादल का भ्रम हो गया। तो इस भ्रम के कारण यहाँ पर भ्राँतिमान अलंकार होगा।
भ्रान्तिमान अलंकार के उदाहरण
फिरत घरन नूतन पथिक , बारी निष्ट अयानि।
फूल्यो देखि पलास वन , समुहे समुझि दवागि।।
ओस बिन्दु चुग रही, हंसिनी मोती उनको जान।
चाहत चकोर सूर, ऒर दृग छोर करि।
बेसर मोती दुति झलक , परी अधर पर आनि।
पट पोंछति चूनो समुझि , नारी निपट अयानि।।
किंशुका कलिका जानकर , अलि गिरता शुक चोंच पर।
शुक मुख में धरता उसे , जामुन का फल समझकर।।
चन्द अकास को वास विहाइ कै,
आजु यहाँ कहाँ आइ उयो है?
चंद के भरम होत, मोड़ है कुमुदनी।
बिल विचार प्रविशन लग्यो , नाग शुँड में व्याल।
काली ईख समझकर , उठा लियो तत्काल।।
नाच अचानक ही उठे , बिनु पावस वन मोर।
जानत ही नंदित करी , यह दिसि नंद किशोर।।
कपि करि हृदय विचारि , दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जानि अशोक अंगार , सीय हरषि उठि कर गहेउ।।
भ्रमर परत शुक तुण्ड पर , जानत फूल पलास।
शुक ताको पकरन चहत , जम्बु फल की आस।।
सन्देह अलंकार – Sandeh Alankar In Hindi
जब अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी हो या फिर जब उपमेय से अन्य किसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो रहा हो, तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है। जैसे-
सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है, कि नारी ही की सारी है।
इस पंक्ति में नारी और साड़ी में सन्देह बना हुआ है। इस कारण यहाँ पर निश्चय न होने के कारण यह सन्देह अलंकार होगा।
सन्देह अलंकार के उदाहरण
है उदित पूर्णेन्दु, वह अधवा किसी,
कामिनी के बदन की बिखरी हटा ।
कहूँ मानवी यदि, मैं तुमको तो ऐसा संकोच कहा,
कहू दानवी तो उसमें है, यह लादण्य की लोच कहा ?
मद भरे ये नलिन-नयन मलीन हैं ।
अल्प जल में या, विकल लघु मीन हैं।।
यह काया है या, शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ, नहीं समझ में आया।
दृष्टान्त अलंकार – Drishtant Alankar In HIndi
जिस पंक्ति में किसी बात को स्पष्ट करने के लिए सादृश्यमूलक दृष्टान्त अर्थात् उदाहरण सहित प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। तो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। जैसे-
जो रहीम उत्तम, प्रकृति का कर सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
इस वाक्य मे आप देख रहे हैं कि, पहली पंक्ति की बात को दूसरी पंक्ति के उदाहरण के सात प्रस्तुत किया गया है, अतः यहाँ पर दृष्टान्त अलंकार माना जाएगा।
दृष्टान्त अलंकार का उदाहरण
पापी मनुज भी आज, मुख से राम राम निकालते।
देख भेड़िये भी आज, आंशू निकालते।
सठ सुधरहिं सत संगत पाई ।
पारस परिस कुधातु सुहाई ।
एक म्यान में दो तलवारें , कभी नहीं रह सकती हैं।
किसी और पर प्रेम नारियाँ , पति का क्या सह सकती है।।
एक म्यान में दो तलवारें , कभी नहीं रह सकती हैं।
किसी और पर प्रेम नारियाँ , पति का क्या सह सकती है।।
अतिशयोक्ति अलंकार – Atishyokti Alankar In Hindi
जहाँ किसी विषयवस्तु को या फिर लोकमर्यादा के विरुद्ध बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है, तो वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जरि गई, गए निशाचर भाग।।
इसमे हनुमान जी के पूँछ मे आग लगाने के बाद की वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर बात कही गई है। इस कारण यह अतिशयोक्ति अलंकार है।
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण
जिस वीरता से शत्रुओं का_सामना उसने किया।
असमर्थ हो उसके कथन_में मौन वाणी ने लिया।।
देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।।
तारा सो तरनि धूरि-धारा मैं लगत जिमि।
थारा पर पारा-पारावार यो हलत है।।
बाधा था विधु को_किसने इन काली जंजीरों से ।
मणि वाले फणियों का_मुख क्यों भरा हुआ था हीरों से।।
भूप सहस दस एकहि बारा,
लगे उठावन टरत न टारा।
आगे नदिया पड़ी अपार_घोड़ा कैसे उतरे पार ।
राणा ने सोचा इस पार_तब तक चेतक था उस पार ।।
अन्योक्ति अलंकार – Anyokti Alankar In Hindi
जिस पंक्ति में वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दूसरे के लिए कही जाती है, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। जैसे-
फूलों के आसपास रहते हैं। फिर भी काँटे उदास रहते हैं।।
इस वाक्य मे सब सही बात होते हुए भी दुःखी प्राणियों का वर्णन किया गया है। अतः यहाँ पर अन्योक्ति अलंकार होगा।
अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण
जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीती बहार।
अब अली रही गुलाब में, अपत कंटीली डार।।
माली आवत देखकर कलियाँ करिहैं पुकार ,
फूली-फूली चुनि लियो काल्ह हमारी बार।।
अति अगाधु अति, औथरौ नदी कूप सरु बाइ।।
खोता कुछ भी नहीं, यहां पर केवल जिल्द बदली पोथी।।
भयो सरित पति सलिल पति , अरु रतनन की खानि।
कहा बड़ाई समुद्र की , जु पै न पीवत पानि।।
जिन पै तै लै आए ऊधो ,
तिनहीं के पेट समै है।।
नहीं पराग नहीं मधुर मधु ,नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सौं बिंध्यों ,आगे कौन हवाल।।
YAHA SE KARNA HAI
विभावना अलंकार – Vibhavana Alankar In Hindi

जिस वाक्य मे कारण के बिना ही कार्य को पूर्ण होने का वर्णन होता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है। जैसे-
बिनु पग चलइ सुनइ बिनु काना,कर बिनु करम करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी, बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी।।
इस पंक्ति मे बताया गया है, कानों के बिना सुनना, पैरों के बिना चलना, बिना हाथों के विविध कार्य करना आदि का विना वक्ता के होने का उल्लेख मिल रहा है, इस नाते यहाँ पर विभावना अलंकार होगा।
विभावना अलंकार के उदाहरण
राजभवन को छोड़_कृष्ण थे चले गये।
तेज चमकता था_उनका फिर भी भास्वर।।
मूक होय वाचाल पंगु_चढ़ै गिरिवर गहन।
जासु कृपा सु दयाल द्रबहु_सकल कलिमलि दहन ।।
बिन घनश्याम धाम-धाम बृजमण्डल में ऊधौ।
नित बस्ती बहार बरषा की है।।
विरोधाभाष अलंकार – Virodhabhas Alankar In Hindi
जहाँ पर वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध का आभास होता है, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे-
या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय।
ज्यों ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उजलों होय।।
इस पंक्ति मे कवि कहना चाहते हैं कि हमारे अनुरागी मन की गति किसी के द्वारा नहीं समझी जा सकती है, क्योंकि यह जैसे-जैसे यह श्री कृष्ण की भक्ति मे डूबता है वैसे-वैसे ही, उस व्यक्ति के विकार दूर हो जाते है।
तो यहाँ विरोध इस बात का है कि कोई काले रंग का व्यक्ति उज्ज्वल कैसे हो सकता है। इस कारण यहाँ पर विरोधाभाण अलंकार होगा।
विशेषोक्ति अलंकार – Visheshokti Alankar In Hindi
जिस वाक्य में कारण के रहने पर भी कार्य का होना नहीं पाया जात है। वहाँ निशेषोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।
नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझाई।।
इस पंक्ति मे कारण तो है कि वर्षा हो रही है, पर प्यास का बुझना नहीं हो रहा है। इसलिए यहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होगा।
प्रतीप अलंकार – Prateep Alankar In Hindi
प्रतीप अलंकार का अर्थ होता है- विपरीत या उल्टा। जिस पंक्ति मे उपमेय का कथन उपमान के रूप में तथा उपमान का उपमेय के ही रूप में प्राप्त होता है। वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। जैसे-
उतरि नहाए जमुन जल, जो शरीर सम स्याम।
तो इस पंक्ति में यमुना के श्याम जल को रामचन्द्र के शरीर के समान देकर उसे उपमेय बना दिया गया है। अतः इसे प्रतीप अलंकार कहते है।
अर्थान्तरन्यास अलंकार – Arthantarnyas Alankar In Hindi
जिस किसी सामान्य वाक्य का किसी विशेष बात से तथा विशेष बात का किसी सामान्य वाक्य से समर्थन होना पाया जाता है। वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। जैसे-
बड़ें न हूजे गुनन बिनु , निरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सों कनक , गहनों गढ़ा न जाय।।
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Hydra Lorem ipsum
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Zdravo, htio sam znati vašu cijenu.
Szia, meg akartam tudni az árát.
Hej, jeg ønskede at kende din pris.