शब्दालंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण: Shabdalankar Kise Kahate Hain
अलंकार के इस भाग मे आप शब्दालंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण के बारे मे सबकुछ जानेंगे। इसी के साथ आपको यह सब याद भी हो जाएगा कि, Shabdalankar Kise Kahate Hain? क्योंकि आपको मलूम है कि हमारी परिक्षाओं मे कितना ज्यादा इसको पूछा जाता है, तो उस कारण से मैने यह पोस्ट बनाई है। तो चलिए जानते है shabdalankar ke prakar.

शब्दालंकार – Shabdalankar In Hindi
Shabdalankar Ki Paribhasha – काव्य में शब्दगत चमत्कार को या फिर शब्द से जो प्रभाव किसी काव्य पर डाला जाता है, उसे ही शब्दालंकार कहते है। शब्दालंकार काव्य में शब्दों पर आश्रित होता है।
शब्दालंकार के भेद – Shabdalankar Ke Prakar
शब्दालंकार के कुल मुख्य रूप से सात भेद व प्रकार होते है, जो निम्न प्रकार के है-
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
- पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
- पुनरुक्तिवदाभास अलंकार
- वीप्सा अलंकार
अनुप्रास अलंकार – Anupras Alankar In Hindi
जहाँ काव्य में एक या फिर अनेक व्यंजन वर्णों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति हो, उसे ही अनुप्रास अलंकार कहते है। जैसे –
- चारू चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल-थल में।
इस वाक्य मे च वर्ण की आवृत्ति क्रमानुसार हो रही है, तो यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
अनुप्रास अलंकार के पाँच भेद होते हैं, जो निम्न है।
1) छेकानुप्रास अलंकार – जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो, वहाँ ही छेकानुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण
रीझि-रीझि, रहसि रहसि हँसि हँसि उठे, साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।
इस वाक्य मे रीझि-रीझि, रहसि-रहसि, दई-दई, हँसि-हँसि में व्यंजन वर्णों की आवृति समान स्वरूप मे हुई है, तो यहाँ छेकानुप्रास अलंकार होगा।
2) वृत्यानुप्रास अलंकार – जहाँ एक या अनेक व्यंजनों की अनेक बार क्रमतः आवृत्ति हो, तो वहाँ ही वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।
कंकन, किंकिनि, नूपुर, धुनि, सुनि
इस वाक्य मे न की क्रमागत आवृत्ति पाँच बार हुई है अतः यहाँ पर वृत्यानुप्रास अलंकार होगा।
3) अन्त्यानुप्रास अलंकार – जहाँ पद के अन्त के एक ही वर्ण और एक ही स्वर की आवृत्ति हो, वहाँ ही अन्त्यानुप्रास अलंकार है।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।
इसमें वाक्यों का अन्त आगर से हो रहा है तो यहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होगा।
4) श्रुत्यानुप्रास अलंकार – जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्णों की आवृत्ति हो, तो वहाँ ही श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।
तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई।
इस वाक्य मे त, द, स, न एक ही उच्चारण स्थान से उच्चारित होने वाले वर्णों की कई बार आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार है।
5) लाटानुप्रास अलंकार – जहाँ समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो परन्तु अर्थ में अन्तर हों, वहाँ ही लाटानुप्रास अलंकार होता है।
पूत सपूत, तो क्यों धन संचय?
पूत कपूत, तो क्यों धन संचय?
इसमे पहले तथा दुसरे लाइन मे एक ही शब्द का प्रयोग हुआ है, पर उनका अर्थ दोनो वाक्यों मे भिन्न है, इसलिए यहाँ पर लाटानुप्रास अलंकार होगा।
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण – Anupras Alankar Ke Udaharan
- खेदी – खेदी खाती दीह दारुन दलन की। ( ‘ख’ और ‘द’ की आवृत्ति हुई है)
- कालिंदी कूल कदंब की डारिन। ( ‘क’ की आवृत्ति हुई है )
- मुदित महिपति मंदिर आए, सेवक सचिव सुमंत बुलाए। ( ‘म’ और ‘स’ की आवृत्ति हुई है)
- बंदौ गुरु पद पदुम परगा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा। ( ‘प’ और ‘स’ की आवृत्ति हुई है)
- तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। ( ‘त’ की आवृत्ति हुई है)
- बरसत बारिद बून्द गहि। ( ‘ब’ की आवृत्ति हुई है)
- चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में। ( ‘च’ की आवृत्ति हुई है)
- कल कानन कुंडल मोर पखा उर पे बनमाल विराजती है। ( ‘क’ की आवृत्ति हुई है )
- कालिका सी किलकि कलेऊ देती काल को। ( ‘क’ की आवृत्ति हुई है)
- कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि। ( क वर्ण की आवृति )
- चमक गई चपला चम चम। ( ‘च’ की आवृत्ति हुई है)
श्लेष अलंकार – Shlesh Alankar In Hindi
श्लेष का शाब्दिक अर्थ है- चिपका हुआ, जहाँ एक शब्द जोड़े के रूप में उपस्थित न होकर अलग-अलग कथन मेें रहता है और हर बार उसका अर्थ अलग-अलग होता है, तो वहाँ ही श्लेष अलंकार होता है। जैसे-
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
इस पंक्ति में पानी का प्रयोग हुआ है जो की तीन अर्थ दे रहा है, मोती के अर्थ मे चमक, चून के अर्थ में जल और मानुष के अर्थ मे प्रतिष्ठा, तो यहाँ श्लेष अलंकार है।
श्लेष अलंकार के उदाहरण
पंक्ति | पहचान |
रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न उबरे, मोती मानस चून।। | पानी – प्रतिष्ठा, चमक और जल |
चिरंजीवौ जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर । को घटि या वृषभानुजा वे हलधर वे वीर ।। | वृषभानुजा – राधा , वृषभानुजा – बैल की बहन हलधर – बलराम , हलधर – बैल |
पी तुम्हारा मुख बास तरंग । आज बौरे भौरे सहकार ।। | बौरे – मस्त बौरे – आम के फूल या मंजरी। |
रो-रोकर सिसक-सिसक कर कहता मैं करुण कहानी । तुम सुमन नोचते, सुनते, करते जानी अनजानी ।। | सुमन – फूल सुमन – सुंदर मन |
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत की सोय । बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय ।। | बारे – जलना और बचपन बढे – बड़ा होने पर और बुझने पर |
मधुबन की छाती को देखो सुखी कितनी इसकी कलियाँ। | कलियाँ – फूल खिलने से पूर्व की अवस्था कलियाँ – यौवन से पूर्व की अवस्था |
मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोई जा तन की झाईं परै स्यामु हरित दुति होई।। | स्यामू – कृष्ण ,और सांवला हरित – हरा रंग और प्रसन्न |
सुबरन को ढूंढत फिरत, कवि व्यभिचारी चोर। | सुबरन – सुन्दर शरीर और सोना |
यमक अलंकार – Yamak Alankar In Hindi
यमक शब्द का अर्थ होता है, युग्मक या फिर जोड़ा। जहाँ एक शब्द या शब्द समूह एक साथ या फिर अलग-अलग पद में उनकी आवृत्ति हो, किन्तु उनका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो, वहाँ पर यमक अलंकार होता है। यमक अलंकार मे शब्दों की दो बार आवृत्ति होती है।
जेते तुम तारे, तेते नभ में न तारे हैं
इस पंक्ति मे तारे शब्द दो बार आया है, परन्तु दोनो का अर्थ भिन्न-भिन्न है, जहाँ एक बार अर्थ तारण करना है तथा दूसरी बार उद्धार करना है। इसलिए यहाँ पर यमक अलंकार माना जाएगा।
यमक अलंकार के उदाहरण
पंक्ति | पहचान |
कहे कवि बेनी बेनी व्याल की चुराइ लीनी। | बेनी – कवी बेनी – चोटी |
कनक कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय । वा खाए बौराए जग या पाए बौराए ।। | कनक – सोना कनक – धतूरा |
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।। | |
काली घटा का घमंड घटा। | घटा – बादल घटा – कम होना |
पच्छी परछिने ऐसे परे पर छीने बीर । तेरी बरछी ने बर छीने हे खलन के ।। | बरछी – तलवार बर छीने – बल को हरने वाला , |
पास ही रे , हीरे की खान खोजता कहां और नादान?” | ही रे – हे / होना हीरे – हिरा/रत्न |
माला फेरत जुग भया मिटा न मनका फेर । कर का मनका डारि के मन का मनका फेर ।। | मनका – माला मन का – मन से |
कबीरा सोई पीर है , जे जाने पर पीर । जे पर पीर न जानई , सो काफिर बेपीर ।। | पीर – धर्मगुरु पीर – पीड़ा /दुःख |
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई। दुर्दिन में आंसू बनकर आज बरसने आई ।। |
वक्रोक्ति अलंकार – Vakrokti Alankar
जहाँ पर वक्ता द्वारा किसी भिन्न अभिप्राय से व्यक्त किए गए कथन का श्रोता अपने अनुसार भिन्न अर्थ की कल्पना कर लेता है, वहाँ ही वक्रोक्ति अलंकार होता है। इसके दो भेद है – श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति।
श्लेष वक्रोक्ति – जहाँ श्रोता, वक्ता के कथन से अपनी रुचि या परिस्थिति के अनुकूल भिन्न अर्थ ग्रहण करता है, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।
को तुम हो इत आये कहा,
घनश्याम हो तू कितू बरसों।
इस पंक्ति में घनश्याम के दो अर्थ हैं – श्री कृष्ण और काले बादल। जिससे श्रोता ने घनश्याम का अर्थ श्रीकृष्ण न ग्रहण न करके काले बाद के ग्रहण कर रहा है। इसलिए यहाँ पर श्लेष वक्रोक्ति अलंकार है।
काकु वक्रोक्ति – किसी कथन का कण्ठ की ध्वनि के कारण दूसरा अर्थ निकलता है, वहाँ काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है। जैसे –
उसने कहा जाओ मत, बैठो यहाँ।
मैने सुना जाओ, मत बैठो।।
इस पंक्ति में उच्चारण के कारण वक्ता ने कुछ और कहा और श्रोता ने कुछ और ही समझा। अतः यहाँ पर काकु वक्रोक्ति अलंकार है।
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
पुनरुक्ति का मतलब पुनः दोहराना होता है। जब किसी काव्य में सौन्दर्यता उत्पन्न करने के लिए एक ही शब्द को दो बार वाक्य मे दोहराया जाता है, तो यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार होता है। यहाँ शब्द की आवृत्ति दो बार तो होती है परन्तु मतलब मे कोई परिवर्तन नहीं होता है।
ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुरनारियाँ।
इस वाक्य मे ठौर-ठौर की आवृत्ति में पुनरूक्तिप्रकाश अलंकार है।
वीप्सा अलंकार – Vipsa Alankar
जब किसी काव्य में शोक, आश्चर्य, आदर, हर्ष, घृणा, मन के भाव आदि को प्रकट करने के लिए एक शब्द की पुनरावृत्ति होती है, तो यहाँ ही वीप्सा अलंकार होता है।
बार-बार गर्जन वर्षण है मूसलधार,
ह्रदय धाम लेता संसार सुन-सुन घोर वज्र हुंकार।
इस पंक्ति में बार-बार और सुन-सुन की पुनरावृ्ति हुई है, जिससे वर्ण और बादलों का प्रभाव और भी गहरा हो गया है। अतः यहाँ पर वीप्सा अलंकार है।
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तो आप सभी को शब्दालंकार के भेद, परिभाषा और उदाहरण के बारे मे सारी जानकारी प्राप्त हो गई होगी। अगर आपके कोई प्रश्न हो तो नीचे कमेंट करके जरूर पूछे बाकी पोस्ट को शेयर जरूर करें।
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