Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5
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Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5
पाठाधारित प्रश्न
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मुनि वशिष्ठ ने भरत से क्या आग्रह किया?
उत्तर:
मुनि वशिष्ठ ने भरत से आग्रह किया कि आप आयोध्या का राज्य संभालें।
प्रश्न 2. भरत द्वारा दिए गए किस समाचार को सुनकर राम सन्न रह गए?
उत्तर:
जब भरत ने पिता राजा दशरथ की मृत्यु की सूचना दी तो यह सुनकर राम सन्न रह गए।
प्रश्न 3. कैकेयराज ने भरत को किसके साथ विदा किया?
उत्तर: कैकेयराज ने भरत को सौ रथों और सेना के साथ विदा किया।
प्रश्न 4. मंथरा की भूमिका का पता चलने पर शत्रुघ्न ने क्या किया?
उत्तर:
मंथरा की भूमिका का पता चलने पर शत्रुघ्न उसके बाल पकड़कर खींचते हुए भरत के पास ले आए। वह उसे जान से मार देना चाहते थे लेकिन भरत ने उसे बचा लिया।
प्रश्न 5. भरत ने ननिहाल में क्या सपना देखा था?
उत्तर:
भरत ने सपना देखा-समुद्र सूख गया, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए, एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है और रथ को गधे खींच रहे हैं।
प्रश्न 6. भरत के अनुसार वन को किसे जाना चाहिए था?
उत्तर:
भरत के अनुसार वन को माता कैकेयी को जाना चाहिए था।
प्रश्न 7. माता कौशल्या ने आहत अवस्था में भरत से क्या कहा?
उत्तर:
कौशल्या ने कहा पुत्र तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई। तुम जो चाहते थे, हो गया। राम अब जंगल में हैं। अयोध्या का राज तुम्हारा है।
प्रश्न 8. कौशल्या को कैकेयी की किस बात का दख था?
उत्तर:
कौशल्या को इस बात का दुख था कि कैकेयी ने साम्राज्य हड़पने का जो तरीका अपनाया, वह अनुचित तथा अन्यायपूर्ण था।
प्रश्न 9. राम ने लक्ष्मण को क्या समझाया?
उत्तर:
राम ने लक्ष्मण को समझाया कि वीर पुरुष धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। हमें समय का इंतजार करना चाहिए। व्यग्र होना बहादुरों के लिए ठीक नहीं होता।
प्रश्न 10. चित्रकूट में किसका आश्रम था?
उत्तर:
चित्रकूट में महर्षि भारद्वाज का आश्रम था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. अयोध्या पहुँचने पर भरत ने क्या महसूस किया?
उत्तर:
अयोध्या पहुँचने पर भरत को अयोध्या असामान्य लगी। वहाँ का माहौल उन्हें बदला-बदला लगा। उन्हें अनिष्ट की आशंका होने लगी। जब उन्होंने सड़कें सूनी होने और बाग-बगीचों में उदासी के माहौल का कारण पूछा, तो उन्हें इसका कोई उत्तर नहीं मिला।
प्रश्न 2. भरत को रानी कौशल्या ने क्या कहा?
उत्तर:
आहत कौशल्या ने भरत से कहा कि तुम्हारे पिता का निधन हो गया है। अब अयोध्या का राज तुम्हारा है, लेकिन कैकेयी द्वारा राज लेने का अपनाया गया तरीका अनुचित था। राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं।
प्रश्न 3. भरत ने अपनी माँ को किन शब्दों में धिक्कारा?
उत्तर:
भरत ने अपनी माँ को धिक्कारते हुए कहा-यह तुमने क्या किया, माते। ऐसा अनर्थ। घोर अपराध। अपराधिनी हो तुम। वन तम्हें जाना चाहिए था राम को नहीं। “तुमने पाप किया है माते। इतना साहस कहाँ से आया तुम्हें ? किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। उल्टा पाठ किसने पढ़ाया? यह अपराध अक्षम्य है।”
प्रश्न 4. भरत ने सभासदों के सामने अपनी क्या मंशा जताई?
उत्तर:
भरत ने सभासदों के सामने अपनी मंशा जताते हुए कहा-मेरी माँ ने जो किया है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ मैं वन में राम के पास जाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी संभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।
प्रश्न 5. भरत वन जाने के लिए क्यों परेशान थे?
उत्तर:
राजा दशरथ की मृत्यु के बाद अयोध्या का सिंहासन खाली था। यह देखकर महर्षि वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को बुलाकर राजकाज संभालने के लिए कहा। भरत ने मुनि का अनुरोध स्वीकार करते हुए राजगद्दी पर राम का अधिकार बताया। राम ही राज्य के सच्चे अधिकारी हैं। राज्य का कार्य भार संभालना भी भरत पाप समझते थे। उन्होंने वन जाने का निश्चय किया ताकि राम को अयोध्या वापस ला सकें।
प्रश्न 6. विराट सेना को आता देखकर लक्ष्मण को क्या संदेह हआ?
उत्तर:
लक्ष्मण पर्णकुटी के बाहर पहरा दे रहे थे। कोलाहल सुनकर वे वृक्ष पर चढ़ गए। उन्होंने विराट सेना को आते देखा। सेना का ध्वज उनका जाना-पहचाना था। यह अयोध्या की सेना थी। अयोध्या की सेना को अपनी ओर आता देख लक्ष्मण को संदेह हुआ कि भरत उन पर आक्रमण करने आए हैं और जान से मार डालना चाहते हैं।
प्रश्न 7. पहाड़ी पर पहुँचकर भरत ने क्या देखा और क्या किया?
उत्तर:
पहाड़ी पर पहुँचकर भरत ने देखा कि राम एक शिला पर बैठे हुए थे। पास में ही सीता और लक्ष्मण बैठे थे। भरत दौड़ पड़े। वे राम के चरणों में गिर पड़े। शत्रुघ्न ने भी राम की चरण वंदना की।
प्रश्न 8. महर्षि वशिष्ठ ने जब राम से अयोध्या लौटकर अपना दायित्व निभाने का आग्रह किया तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर:
महर्षि वशिष्ठ ने राम से कहा कि रघुकुल की परंपरा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र ही राज का अधिकारी होता है। इसलिए तुम अयोध्या लौट चलो और राज-कार्य के दायित्व को संभालो। तब राम ने कहा कि वे पिता की आज्ञा का पालन कर रहे हैं। पिता की मृत्यु के बाद वे उनका वचन नहीं तोड़ सकते। उन्होंने यह भी कहा-“चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए, पर मैं पिता के वचनों का पालन करूँगा। मैं उनकी आज्ञा से वन में आया हूँ। अब भरत को ही राजगद्दी संभालनी चाहिए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ननिहाल से अयोध्या लौटकर भरत और कैकेयी के बीच क्या वार्तालाप हुआ?
उत्तर:
जब भरत ननिहाल से अयोध्या पहुंचे तो माता कैकेयी से पिता के बारे में पूछा। माता कैकेयी ने पिता के निधन का समाचार दिया। भरत यह सुनकर शोकाकुल होकर विलाप करने लगते हैं। फिर भरत ने माता कैकेयी से पूछा कि क्या पिता ने उनके लिए कोई अंतिम संदेश दिया था। माता ने इनकार किया। कैकेयी तब उन्हें अपने वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए कहती हैं कि उन्होंने ही राम को वन भेजने की प्रार्थना दशरथ से की थी। यह सब उन्होंने भरत के हित के लिए किया था इसलिए वह भरत से अयोध्या का राज संभालने को कहती हैं। तब भरत का क्रोध फूट पड़ा। उन्होंने माता कैकेयी को बहुत बुरा भला कहा। माता ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। उसने जो भी किया वह उसके भलाई के लिए किया। भरत माता को धिक्कारते हुए कहते हैं कि वह राम को मनाकर वापस लाएँगे और उनके दास बनकर रहेंगे। यह कहकर वे काफ़ी उत्तेजित हो गए और चकराकर धरती पर गिर पड़े।
प्रश्न 2. भरत ने वन जाने का निर्णय क्यों लिया? उनकी चित्रकूट यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
भरत ने राम को वन से मनाकर वापस अयोध्या लाने के लिए वन जाने का निर्णय किया। वह अपने पूरे दल-बल के साथ चित्रकूट की ओर चल दिए। पहले तो निषादराज गुह को सेना देखकर कुछ संदेह हुआ पर सही स्थिति का पता चलते ही उन्होंने भरत की आगवानी की। उन्होंने गंगा पार करने के लिए भरत के लिए 500 नावें जुटा दीं। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ा। मुनि भारद्वाज के आश्रम पहुँचकर भरत को राम का समाचार मिलता है। आश्रम में ही रात बिताकर सभी अगली सुबह उस पहाड़ी की ओर चल पड़ते हैं। जिस पर राम का पर्णकुटी निवास था। वे शत्रुघ्न के साथ नंगे पैर, पहाड़ी को प्रणाम कर उस पर चढ़ने लगते हैं। भरत की सेना देखकर लक्ष्मण को लगा कि भरत उन्हें मार डालना चाहते हैं। उन्हें सेना का औचित्य समझ नहीं आ रहा था। राम ने लक्ष्मण को समझाया कि शांत रहें। भरत राम के समीप पहुँचकर उनके चरणों में गिर पड़े। भरत पिता के निधन का दुखद समाचार राम को देने में हिचकिचा रहे थे। भरत ने राम से अयोध्या वापस जाकर राजग्रहण करने का अनुरोध किया जिसे राम ने दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया।
प्रश्न 3. राम पिता के सच्चे भक्त थे कैसे? स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
राजा दशरथ व मुनि वशिष्ठ से परामर्श के बाद दरबार में राम को राजा बनाने की घोषणा की गई किंतु कैकेयी द्वारा राजा दशरथ की इच्छा का पता चलते ही राम राज्य का लोभ-मोह छोड़कर पिता का वचन निभाने वन चले गए। वन-गमन को उन्होंने राजाज्ञा नहीं पिताज्ञा मानकर स्वीकार किया। वन में जाकर जब भरत ने उनसे लौटने का आग्रह किया तब भी राम ने यह कहकर उसे अस्वीकार किया कि पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद भी राम पिता के वचन का पालन करते रहे। राम को मुनि वशिष्ठ द्वारा राज-काज संभालने के लिए कहने पर भी उनका जवाब था कि “चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए परंतु मैं पिता की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता।” इन उपयुक्त आधारों पर हम कह सकते हैं कि राम पिता के सच्चे भक्त थे।
प्रश्न 4. भरत का त्याग इस पाठ में बहुत बड़ा उदाहरण है। कैसे? पाठ के आधार पर लिखए।
उत्तर:
भरत को आयोध्या के राज्य के प्रति ज़रा भी लोभ नहीं था। उन्होंने राम को सच्चा उतराधिकारी बताते हुए वहाँ का राज्य ठुकरा दिया। दूसरा उदाहरण भरत राम को मनाने माता कैकेयी एवं प्रजाजनों के साथ वन जाते हैं और राम को वापस लाने का प्रयास करते हैं। भरत राम के पास से खाली नहीं लौटते और राम से उनकी चरण पादुका लेकर आते हैं ताकि सिंहासन पर चरण पादुका रखकर उसी की आज्ञानुसार राज्य का कार्य कर सकें। उन्होंने राजा जैसा कोई अभिमान न करते हुए, नंदीग्राम में तपस्वी जैसा जीवन बिताते रहे। इन सब बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भरत के त्याग से बढ़कर कोई उदाहरण नहीं हो सकता है।
मूल्यपरक प्रश्न
प्रश्न 1. क्या आप कभी भरत की तरह अपने बड़े भाई या पिता से किसी बात को कहने का साहस जुटा पाने में असमर्थ रहे हैं? अगर हाँ तो कब और क्यों?
उत्तर:
हाँ, मैं अपने दादा जी की मृत्यु की सूचना पाकर भी पिता जी को समाचार देने का साहस नहीं जुटा पा रहा था।
प्रश्न 2. पाठ के आधार पर अगर आप किसी आश्रम में गए हों तो वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 3. प्राचीन भारत में हमारे सात प्रमुख महर्षि थे। उनके गोत्र के आधार पर नाम इंटरनेट से या अध्यापक महोदय से पता करके लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
अभ्यास प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भरत ने अपनी ननिहाल में क्या सपना देखा?
2. दशरथ की मृत्यु के समय भरत कहाँ थे?
3. मृत्यु के समय दशरथ के मुख से क्या शब्द निकले?
4. महर्षि भारद्वाज का आश्रम कहाँ स्थित है?
5. भरत की चिंता का क्या कारण था?
6. अयोध्या नगरी को देख भरत के मन में क्या भाव उठे?
7. लक्ष्मण सेना देखकर उत्तेजित क्यों हो गए?
8. भरत को पिता दशरथ की मृत्यु का समाचार किसने दिया और कैसे?
9. राम ने क्या कहकर अयोध्या लौटने से इनकार कर दिया?
10. भरत वन जाने के लिए क्यों व्यग्र थे?
11. भरत के चरित्र से तम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
12. राम ने रहने के लिए कुटिया कहाँ बनाई थी?
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. अयोध्या लौटकर भरत का माता कैकेयी के साथ क्या वार्तालाप हुआ?
2. भरत की चित्रकूट यात्रा का वर्णन करो।
3. लक्ष्मण ने अचानक ऐसा क्या देखा कि आपा खो बैठे और आक्रामक मुद्रा में आ गए।
4. राम के अयोध्या लौटने के लिए तैयार न होने पर भरत ने राम से क्या अनुरोध किया?
5. भरत के चरित्र से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary
भरत अपने ननिहाल कैकेय राज्य में थे। वे अयोध्या की घटनाओं से बिलकुल अनिभिज्ञ थे, पर चिंतित थे। एक दिन उन्होंने विचित्र सपना देखा। समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। जिस समय भरत अपना सपना मित्रों, सगे संबंधियों को सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या के घुड़सवार दूत वहाँ आ पहुँचे। भरत अपने नाना कैकयराज से विदा लेकर सौ रथों के साथ आयोध्या के लिए निकल पड़े। लंबा रास्ता होने के कारण वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या नगर काफ़ी शांत और उदास था। अयोध्या के बदले रूप को देखकर उन्हें मन में अनिष्ट की आशंका होने लगी। वे सीधे राजभवन गए। वे पिता के महल की ओर गए, किंतु वहाँ उन्हें महाराज नहीं मिले। वे कैकेयी के महल की ओर गए।
माता कैकेयी ने अपने पत्र भरत को गले लगा लिया। भरत ने माँ से पिता के बारे में पूछा तो कैकेयी ने उन्हें बताया कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए और पछाड़ खाकर गिर पड़े। माता कैकेयी ने उन्हें उठाया। माँ ने भरत को ढाढस बंधाया। भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को पिता ने चौदह वर्षों के लिए वनवास दे दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। कैकेयी ने भरत को बताया कि अंतिम समय में महाराज के मुँह से केवल तीन शब्द निकले-हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा। भरत ने यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वनवास क्यों? क्या उनसे कोई अपराध हो गया था। तब कैकेयी ने उन्हें वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए राजगद्दी संभालने के लिए कहा। भरत अपना क्रोध नहीं रोक पाए। वे चीख पड़े-‘यह आपने क्या किया माते। आप अपराधिनी हो। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य।’ मेरे लिए यह राज बेकार है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए। वे बार-बार अपनी माता को कोसते रहे।’ किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। किसने तुम्हें उलटा पाठ पढ़ाया। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा।
इस बीच मंत्रिगण और सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने साफ़ शब्दों में सभासदों से कह दिया-‘आप सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।’ वे सुध-बुध खो बैठे थे। होश में आने पर वे कौशल्या के महल की ओर चल दिए। कौशल्या भी आहत थी। वे कौशल्या के चरणों से लिपटकर खूब रोए। कौशल्या ने भरत को क्षमा किया और गले लगा लिया। भरत सारी रात रोते रहे। सुबह होते ही शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। मंथरा अयोध्या के घटनाक्रम से घबरा गई थी। शत्रुघ्न ने लपककर मंथरा के बाल पकड़ लिए। वे मंथरा को घसीटते हुए भरत के सामने लाए। भरत ने बीचबचावकर उसे छोड़ दिया।
मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन खाली नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने भरत से कहा-‘वत्स। तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।’ भरत ने इस सलाह को नहीं माना और वन वापस जाकर राम को वापस लाने की इच्छा जताई। सभी वन जाने के लिए तैयार थे। अगली सुबह सभी मंत्रियों और सभासदों, गुरु वशिष्ठ तथा नगरवासियों के साथ वन की ओर चल दिए। तब तक राम गंगा पार कर चित्रकूट पहुँच गए थे। महर्षि भारद्वाज के आश्रम के निकट एक पहाड़ी पर एक पर्णकुटी बनाई गई। भरत को सूचना मिल गई थी। वे चित्रकूट ही आ रहे थे। वे पूरे दल बल के साथ थे। निषाद गुह को उन्हें देखकर कुछ संदेह हुआ। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए उन्होंने पाँच सौ नाव लाकर खड़ी कर दी। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ता था। उन्होंने भरत को राम का समाचार दिया और मार्ग भी दिखा दिया जो राम की पर्णकुटी तक जाता था। अयोध्यावासियों ने रात आश्रम में बिताई। आगे जंगल घना था। सेना चली तो वन में खलबली मच गई। सभी जानवर पक्षी इधर-उधर भागने लगे। राम-सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना चली आ रही है। लक्ष्मण जोर से राम से बोले-‘भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाह रहे हैं। राम कुटी से बाहर आ गए। वे बोले-भरत हम पर हमला कभी नहीं करेगा। वह हम लोगों से मिलने आ रहा होगा।’ लक्ष्मण आक्रमण करने के लिए व्यग्र थे किंतु राम ने उन्हें समझाया कि वीर पुरुष अपना धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। भरत सेना को पहाड़ी के नीचे छोड़कर शत्रुघ्न के साथ पहाड़ी के ऊपर गए। वे राम के चरणों पर गिर पड़े। राम ने भरत और शत्रुघ्न को उठाकर अपने गले से लगा लिया। उस समय सबकी आँखों में आँसू थे। भरत ने राम को पिता के निधन की बात बताई। वे सुनकर शोक में डूब गए। कुछ देर बाद राम पहाड़ी के नीचे उतरकर नगर वासियों तथा माता कौशल्या, कैकेयी और गुरु से मिलने गए। राम ने बड़े ही सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने भरत को समझाया कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है। मुनि वशिष्ठ ने भी राम को रघुकुल की परंपरा का वास्ता देकर राज-काज सँभालने का आग्रह किया। राम संयमित होकर बोले मैं पिता की आज्ञा से वन में आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा-चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य ठंडा पड़ जाए किंतु मैं पिता की आज्ञा को नहीं ठुकरा सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और भरत को भी उन्हीं के आज्ञा से राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया और अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाकर कहा, चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन होगा। ‘राम की इन चरण पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखकर अयोध्या लाया गया। भरत ने वहाँ उनका पूजन किया।
भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। वे तपस्वी पोशाक पहनकर नंदी ग्राम चले गए और राम के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे।
शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या 26
सर्वथा – बिलकुल। अनभिज्ञ – जानकारी न होना। चिंतित होना – चिंता होना। मन न लगना – उदास होना। उतावले – आतुर, बेचैन। लाँघना – पार करना। तुमुलनाद – बहुत शोर। कलरव – पक्षियों की आवाजें। अशंका – डर।
पृष्ठ संख्या 27
निधन – मृत्यु। विलाप – रोना। ढाढस – हिम्मत। यशस्वी – यशवान। व्यस्त – काम में लगे होना। व्याकुल – बेचैन, दुखी। भ्राता – भाई। दंड – सजा। अहित – बुरा। निष्कंटक – बिना किसी बाधा के। अनर्थ – गलत। अर्थहीन – बेकार। साहस – हिम्मत। भ्रष्ट – गलत। अक्षम्य – जो क्षमा करने योग्य न हो। सौगंध – कसम।
पृष्ठ संख्या 28
उत्तेजित – जोश में आ जाना। नियंत्रण – काबू। आहत – दुखी। मनोकामना – मन की इच्छा। अनुचित – गलत। निर्मम – कठोर। ग्लानि – अपने ऊपर नफ़रत। व्यक्त – प्रकट। अहित – बुरा। खतरा – डर। दृष्टि – नज़र। लपककर – आगे बढ़कर। आग्रह – विनती।
पृष्ठ संख्या 29
चतुरंगिनी सेना – पैदल सैनिकों, घुडसवारों तथा रथों से सजी सेना। कोलाहल – शोर। खलबली – हल चल मचना। बसेरा – घर। पाँव – पैर। पहरा देना – रखवाली करना, देखभाल करना। विराट – बड़ी। एकछत्र – अकेला।
पृष्ठ संख्या 31
धैर्य – धीरज। उतावलापन – आतुरता, बहुत जल्दी करना। नैसर्गिक – स्वाभाविक, कुदरती। छवि – शक्ल। शिला – चट्टान। दुखद – दुखदायी, दुख देने वाला। अनिवार्य – बहुत आवश्यक। दायित्व – जिम्मेदारी निभाना पालन करना।
पृष्ठ संख्या 32
संयत – स्थिर। शीतल – ठंडा। मर्यादा – इज़्ज़त। विफल – असफल। सुसज्जित – अच्छी प्रकार सजा हुआ। प्रतिहारी – सेवक। पादुकाएँ – खड़ाऊँ। धरोहर – अमानत। गरिमा – सम्मान गौरव। आँच न आने देना – कोई हानि न पहुँचने देना।
NCERT Solutions For Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5 PDF
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